Monday 29 July 2013

Mother Karma life Introduction




माँ कर्मा का जीवन परिचय - Maa Karma Devi Jivan Parichay:-

लगभग एक हजार वर्ष पूर्व झासी उत्तरप्रदेश में श्री रामशाह प्रतिष्ठित तेल व्यापारी थे| वे एक समाज सुधारक, दयालु, धर्मात्मा एवं परोपकारी व्यक्ति थे| उनकी पत्नी को शुभ नक्षत्र, मे चैत्र माह के क्रष्ण-पक्ष की एकादशी को सं वत 1073 विक्रम में एक कन्या का जन्म हुआ| विध्दांन पण्डितो दूारा कन्या की जन्मपत्री बनबाई गई| पण्डितो ने ग्रह, नक्षत्र का शोधन करके कहा- राम शाह तुम बहुत ही भाग्यवान हो जो एसी गुणवान कन्या ने तुम्हारे यहां जन्म लिया है| वह भगवान की उपासक बनेगी| शास्त्रानुसार पुत्री का नाम कर्माबाई रखा गया| 

बाल्यावस्था से ही कर्मा जी को धार्मिक कहानिया सुनने की अधिक रुचि हो गई थी| यह भक्ति भाव मन्द-मन्द गति से बढता गया| कर्मा जी के विवाह योग्य हो जाने पर उसका सम्बंध नरवर ग्राम के प्रतिष्ठित व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया गया| पति सेवा के पश्चात कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था वह समय भगवान श्री क्रष्ण के भजन-पूजन ध्यान आदि में लगाती थी| उनके पति पूजा, पाठ, आदि को केवल धार्मिक अंधविश्वास ही कहते थे| एक दिन संध्या को भगवान क्रष्ण जी की मूर्ति के पास बैठी कर्माबाई भजन गा रही थी और भगवान के ध्यान में मुग्ध थी| एकाएक उनके पति ने आकर भगवान श्रीक्रष्ण की मूर्ति सिंहासन पर से उठाकर छिपा दी| कर्मा ने जब नेत्र खोले तो भगवान श्रीक्रष्ण की मूर्ति को अपने स्थान पर ना देखकर एकदम आश्चर्यचकित होकर चारों तरफ देखने लगी और घबडाकर गिर पडी| गिरते ही वह मूर्छित हो गई, उनके पति ने तुरंत अपनी गोद में उठा लिया और भगवान श्रीक्रष्ण की मूर्ति देकर कहने लगे कि इनकी भक्ति करते करते इतना समय व्यतीत हो चुका है| कभी साक्षात प्रभु के दर्शन भी हुए हैं| कर्मा ने उत्तर दिया मैं विश्वास रखती हूं कि एक न एक दिन मुझे बंशीधारी के दर्शन अवश्य ही होगे| 

सामाजिक और धार्मिक कार्यो में तन, मन, और धन से लगन लगनपूर्वक लगे रहना उनमें अत्यधिक रुचि रखना, दीन-दुखियो के प्रति दया भावना रखना | इन सभी करणों से कर्माबाई का यशगान नरवर ग्राम (ससुराल) में बडी तेजी से फेलने लगा | उसी समय नरवर ग्राम के राजा के हाथी को खुजली रोग हो गया था | जिसे राज्य के श्रेष्ठ वैधों के उपचार से भी ठीक नही किया जा सका | हाथी की खुजली ठीक करने हेतु उसे तेल से भरे कुन्ड में नहलाने का सुझाव किसी ने राजा को दिया राज्य के समस्त तेलकारों को राजा के द्वारा आदेश दिया गया कि वे अपना समस्त तेल बिना मूल्य के एक कुण्ड में डालें जिससे कि वह कुण्ड भर जावें | राजा के अन्याय के कारण अधिकांश तेलकार भूखों मरने लगें एक माह के पश्चात भी अन्यायी राजा का कुण्ड तेल से ना भरा जा सका | इस अन्याय से दुखी होकर कर्माबाई श्रीक्रष्ण भगवान के चरणों में गिर पडी और रोकर कहने लगी हे दयामय मुरलीधारी निर्धनों, निर्बलों की रक्षा कीजिये | चमत्कार दिखाईये प्रभु | दूसरे दिन प्रातः राजा ने कुण्ड को तेल से भरा पाया | तब भगवान के चमत्कार को समझ कर राजा ने कर्मा जी से छमा मांगी | 

एक बार कर्मा जी के पति बहुत बीमार हो गये थे बहुत उपचार के उपरान्त भी उन्हें नहीं बचाया जा सका | पति के स्वर्गवास हो जाने पर कर्मा पागल की भांति श्रीक्रष्ण के चरणों में जाकर फूट-फूटकर रोने लगी और कहा- हे दीनानाथ भगवान तूने मुझे विधवा बना दिया व मेरा सुहाग छीनकर मुझे असहाय कर दिया है | तुम्हें अपने भक्तों पर दया द्रष्टि रखना चाहिेए | पति के स्वर्गवास होने के तीन माह उपरान्त कर्मा जी के दिूतीय पुत्र का जन्म हुआ | उसका प्रतिदिन का समय दोनों बालको के लालन-पालन और भगवान की भक्ति में व्यतीत हो जाता था | 

तीन वर्ष के पशचात कर्मा को भगवान के दर्शन करने की प्रबल इच्छा हुई तब एक दिन सुध-बुध भूलकर आधी रात के समय अपने व्रध्द माता पिता और दोनो बच्चों को सोता छोडकर प्रभु के ध्यान में लीन घर से निकल गई | घोर अंधकार को चीरती हुई भगवान जगन्नाथपुरी के मार्ग की और चली गई | उसे यह भी ज्ञात नहीं हुआ कि वह कितनी दूरी चल चुकी है | लगातार कई दिनो तक चलते रहने के कारण से अब कर्मा जी को अतयन्त पीडा होने लगी थी वह व्रक्षों की पत्तियां खाकर आगे बढी राह में कर्मा भजन गाती हुई जगन्नाथ जी के विशाल मन्दिर के प्रमुख द्वार पर पहुची | एक थाली में खिचडी सजाकर पुजारी कें समक्ष भगवान को भोग लगाने हेतु रख दी | पुजारियों ने इस दक्ष्णिाहीन जजमान को धक्के मारकर बाहर कर दिया | बेचारी उस खिचडी की थाली को उठाकर समुद्र तट की और चल दी और समुद्र के किनारे बैठकर भगवान की आराधना करने लगी कि घट-घट व्यापी भगवान अवश्य ही आवेंगे और इस विश्वास में आंख बन्द करके भगवान से अनुनय-विनय करने लगी कि जब तक आप आकर भोग नही लगावेंगे तब तक मै अन्न ग्रहण नही करूंगी | यह तो भोग प्रभु के निमित्त बना है | सुबह से शाम तक भगवान की प्रतीक्षा करती रही | धीरे धीरे रात ढलती गई और प्रभु के ध्यान में मग्न हो गई | एकाएक भगवान की आवाज आई कि "मां,, तू कहां है? मुझे भूख लगी है " इतने अंधकार में भी उसे प्रभु की मोहनी सूरत के दर्शन हुए और प्रभु को अपनी गोद में बैठाकर खिचडी खिलाने लगी | इसके बाद कर्मा मां ने प्रभु की छोडी हुई खिचडी ग्रहण की और आन्नद विभोर होकर सो गई | 

सुबह के प्रथम दर्शन में पुजारी ने देखा कि भगवान के ओंठ एवं गालों पर खिचडी छपी हुई है तभी पुजारी लोग बोखला उठे और कहने लगे कि यह करतूत उसी कर्मा की है जो चोरी से आकर प्रभु के मुंह पर खिचडी लगाकर भाग गई है | राज दरबार में शिकायत हुई कि कर्मा बाई नाम की ओरत ने भगवान के विग्रह को अपवित्र कर दिया | सभी लोग ढूढते हुऐ कर्मा के पास समुद्र तट पहुँचे और फरसा से उसके हाथ काटने की राजा द्वार आज्ञा दी गई|परन्तु प्रभु का कोतुक देखिए | कि ज्यों ही उस पर फरसे से वार किया गया तो दो गोरवर्ण हाथ कटकर सामने गिरे, परन्तु कर्माबाई ज्यो की त्यों खडी रही राज दरबारियों ने फिर से बार किया,परन्तु इस बार दो गोरवर्ण हाथ कंगन पहने हुए गिरे | तभी राज दरबारियों ने देखा की वह तो अपनी पूर्वस्थिती में खडी है| अन्यायियों ने फिर से बार किया तो इस बार दो श्यामवर्ण हाथ एक में चक्र, और दूसरे में कमल लियें हुये गिरे | जब दरबारियों को इस पर भी ज्ञान नहीं हुआ और पागलो की तरह कर्मा पर वार करने लगें तब आकाशवाणी हुई "कि अरे दुष्टों | तुम सब भाग जाओ नही तो सर्वनाश हो जाएगा" और जिन्होंने हाथ काटे थे उनके हाथ गल गए | कुछ लोग भाग खडे हुयें और कहने लगे यह जादूगरनी हैं | यह खबर राज दरबार में पहुची तो राजा भी व्याकुल होकर तथ्य को मालूम करने के लिये जगन्नाथ जी के मन्दिर में गये | वहाँ राजा ने देखा कि बलदेव जी, सुभद्रा जी एवं भगवान जगन्नाथ जी के हाथ कटे हैं | तब वहाँ के सारे पुजारियों एवं परिवारो में हाहाकार मच गया और कहने लगे कि अनर्थ हो गया | राजा को स्वप्न में प्रभु नें आज्ञा दी कि हाथ तो माँ को अर्पित हो गये अब हम बगैर हाथ के ही रहेगे तथा प्रति वर्ष कर्मा के नाम की ही खिचडी का भोग पाते रहेगे | 

उस दिन से आज तक इसी पुण्यतिथि चैत्र क्रष्ण पक्ष की ग्यारस, जिस दिन की यह घटना हैं, उसी तिथि से भगवान जगदीश स्वामी के मन्दिरों में भक्त कर्माबाई की खिचडी को ही सर्वप्रथम भगवान को भोग लगाया जाता हैं एवं प्रसाद के रूप में खिचडी बाटी जाती हैं | तभी से यह कहावत है कि "जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ"| सम्पूर्ण भारत वर्ष में जहाँ जहाँ भी भगवान जगन्नाथ स्वामी के मन्दिर है वहा बहुतायत से उन पर हमारे स्वजातिये बन्धुओं का स्वामित्व है जिसका श्रेय हमारी साहू जाति की भक्त श्रिरोमणि कर्मा मां को ही है | 
“कर्मा जयन्ती प्रतिवर्ष चैत्र क्रष्ण पक्ष की एकादशी को प्रत्येक नगर एवं ग्रामों में धूमधाम से मनाइए”

माँ कर्मा की आरती :-

|| संत शिरोमणि माँ कर्मा की जय || 

ॐ जय कर्मा माता, ॐ जय कर्मा | 

राम शाह घर जनम लियो, सब जग है ध्याता || ॐ || 

पति भक्ति की प्रणेता, हो तुम ही ईश्वर प्यारी | 

अदभूत महिमा तुम्हारी, सब गाएं नर नारी || ॐ || 

चैत महिना दिन ग्यारस की तुम झाँसी जन्मी | 

नरवरगड़ ससुराल आपकी, पति सेवा कीनी || ॐ || 

ताल मोतियाभारे तेल से, सबसे कर जोड़ कहा || ॐ || 

तेल पेर कर थकित हुए जब बन्धु सारे | 

माँ कर्मा ने अरज करी हे नटवर प्यारे || ॐ || 

सुनी तेर जब माँ कर्मा की, तेल से ताल भरा | 

मगनवित् होए गवां लागी, हे पालनकर्ता || ॐ || 

जगन्नाथ में खिचड़ी खाई, प्रभु शरण गहि | 

सत्यनारायण कह कर गावे, दया करो माता || ॐ || 


ॐ जय कर्मा माता, ॐ जय कर्मा ||

Sunday 28 April 2013

ganj basoda sahu samaj [2011-2013] achievement


गंज बासौदा नगर साहू समाज समिति [2011-2013] की उपलब्धियाँ

वर्ष 2011-12 मे माँ कर्मा देवी का स्तम्भ का निर्माण माँ कर्मा चौराहा, पचमा मेन रोड गंजबासौदा मे साहू समाज गंजबासौदा के सहयोग राशि द्वारा कराया गया| जिसका लोकार्पण माननीय विधायक हरिसिंह जी रघुवंशी (गंजबासौदा) एवं न.पा.अ. मोहन जी भावसार (गंजबासौदा) के कर कमलो द्वारा समाज अध्यक्ष उमाशंकर जी एवं समस्त साहू समाज की उपस्थिति मे दिनांक 11-01-2012 मे किया गया|





















































माँ कर्मा देवी का स्तम्भ का लोकार्पण [ साहू समाज महिला मंडल की सदस्यो द्वारा पूजन ]























माननीय विधायक हरिसिंह जी रघुवंशी एवं समाज अध्यक्ष उमाशंकर जी साहू एवं समस्त साहू समाज] 

Wednesday 17 April 2013

Sahu Samaj Chhindwara






६ अप्रैल २०१३ को कर्मा जयंती का सफलता पूर्वक आयोजन 

साहू समाज छिन्दवाड़ा एक सामाजिक संगठन है| इस संगठन की स्थापना १९५२ में की गई जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के लोगो को संगठित रखना एवं विभिन्न अवसरों पर उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना था | संगठन का मुख्य कार्य समाज सुधार, सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों का क्रियान्वयन और समाज से जुड़े लोगो की मदद करना है | साहू समाज छिन्दवाड़ा प्रत्येक वर्ष समाज से जुड़े सभी लोगो की मदद से विभिन्न कार्यक्रम संचालित करता आया है | जिनमे प्रमुख रूप से समाज के जरुरतमंद परिवारों की विवाह योग्य कन्याओ एवं युवको का सम्पूर्ण सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ विवाह संपन्न करना एवं समय- समय पर समाज के द्वारा सार्वजनिक उत्सवों में आगंतुकों की सेवा करना सम्मिलित है |



वर्ष 2012 की गतिविधियाँ -

माँ कर्मा जयंती का सफल आयोजन एवं सांस्कृतिक, बौधिक कार्यक्रम संपन्न
15 जोड़ो का सामूहिक विवाह सम्मेलन
सामजिक वाहन रैली का नगर भ्रमण
आनंद मेले का आयोजन
महाशिवरात्रि पर्व के पावन अवसर पर “महादेव” का अभिषेक

वर्ष 2011 की गतिविधियाँ -

माँ कर्मा जयंती का सफल आयोजन एवं सांस्कृतिक, बौधिक कार्यक्रम संपन्न
24 जोड़ो का सामूहिक विवाह सम्मेलन
सामजिक वाहन रैली का नगर भ्रमण

वर्ष 2010 की गतिविधियाँ -

माँ कर्मा जयंती का सफल आयोजन एवं सांस्कृतिक, बौधिक कार्यक्रम संपन्न
दर्पण स्मारिका का विमोचन
आनंद मेले का आयोजन
21 जोड़ो का सामूहिक विवाह सम्मेलन
सामजिक वाहन रैली का नगर भ्रमण


नगर कार्यकारणी -

संरक्षक : सर्वश्री जयशंकर जी साहू, श्री अंगद जी साहू , श्री प्रेमदास जी साहू , श्रे पन्नालाल जी साहू , श्री भगवानदास जी साहू , श्री रामप्रसाद जी साहू , श्री जगदीश प्रसाद जी साहू , श्री धनपत जी साहू , श्री पूरनमल जी साहू , श्री गणेश दशरथ जी साहू , श्री कोमलप्रसाद बाबूलाल जी साहू , श्री नरेन्द्र साहू (जिलाध्यक्ष) , श्री कलीराम जी साहू, श्री किशोरी जी साहू , श्री रमेश जी साहू (RTC), डॉ गणेश जी साहू , श्री निर्मल जी साहू |

Sunday 14 April 2013

Friday 5 April 2013

Maa Kamra devi pics and other pics

Maa Kamra devi pics




other pics




































Maa Kamra is the patron deity of the Sahu Samaj in India. Maa Kamra Jayanti celebrates the day when she appeared on earth. Maa Kamra Jayanti 2013 date is April 6.

The popular belief is that she was born on earth on the 11th day of Chaitra month – Chatira Gyaras – Krishna Paksha Ekadasi in Chaitra month or waning phase of moon in Chait month.

Numerous programs are observed on the day by the Sahu Samaj including mass marriages, processions, charity, free food and cloth distribution etc.